Gand Chudai Ka Maza सहकर्मियों के साथ गांड चुदाई का मजा
मेरा नाम अमित है. मेरी उम्र 24 साल है. आज में आपको अपनी Hindi Gay Sex Story सुनाने जा रहा हूँ। कैसे सहकर्मियों के साथ Gand Chudai Ka Maza लिया।
दिखने में औसत हूं. मैं अपने घर में अकेला लड़का हूं और बहुत शर्मीला किस्म का इंसान हूं।
इसलिए एक-दम मैं खुल कर नहीं बोलता। मुझे किसी और के साथ घुलने-मिलने में वक्त लगता है। मुझे लड़के भी पसंद हैं, पर मैंने ये बात अपने तक राज़ ही रखी थी।
मैंने हाल ही में ऑफिस ज्वाइन किया था, जो दिल्ली में है, और वहीं मैं नीरज से मिला। उसकी उम्र 25 साल है. दिखने में बहुत हॉट और सेक्सी है।
हमारी जान-पहचान आम सहकर्मियों के लिए जरूरी हुई। फिर रोज़ मिलने की वजह से हमारी बात होने लगी। कुछ ऑफिस की पार्टियों में हम थोड़े पास आ गए।
नीरज को पता चल गया कि मुझे लड़के भी पसंद है, तो उसने मेरे साथ फ्लर्ट करना शुरू कर दिया।
वो हमेशा अकेले में फ़्लर्ट करता है, और देखते ही देखते उसने एक शाम अपने दिल की बात बताई कि वो मुझे पसंद करता था।
पर मैं अभी भी श्योर नहीं था, और हमेशा की तरह कन्फ्यूज था। मैं समझ नहीं पाया कि कैसे प्रतिक्रिया करूँ। पर ऐसी स्थिति में भी नीरज बड़ी शांत और परिपक्वता के साथ मुझे संभालना था।
एक शाम मैं नीरज के साथ ब्रिज पर घूमने गया। अकेले पा कर उसने मेरा हाथ पकड़ा। मेरा दिल ज़ोर से धड़कना शुरू हुआ।
धीरे-धीरे उसने मुझे करीब खींच लिया। मेरा मुँह अपनी तरफ करके उसने मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए। उसने एक हाथ से मेरी गर्दन को पकड़ा और दूसरे हाथ से मेरी कमर को।
अपनी और खिंचते हुए उसने मेरे होंठों को चूमा और चूसना शुरू किया। मैं भी अपनी आंखें बंद करके उनके होंठों को अपने होंठों पर रखकर मुंह में दर्द कर रहा था।
कुछ वक्त के बाद हम रुके, और एक-दूसरे से कुछ नहीं बोला। बस एक-दूसरे के हाथों में हाथ पकड़कर घर वापस आ गए। घर आ कर मेरे दिमाग में उसी की बातें और किस याद आ रहा था।
मैं अपने आप पर नियंत्रण नहीं कर पाया, और उसे याद करके मुंह मारने लगा। कमरे में अकेला था ही, तो वहीं पर अपना कमरा निकाल दिया।
दूसरे दिन से हम वापस ऑफिस के बाद नीरज बिताने लगे। उसने धीरे-धीरे अपने रंग में मुझे रंग दिया था। एक रात उसने मुझे नाइट-आउट के लिए पूछा तो मैंने भी हां कर दी।
उस शाम उसने मुझे बाइक पर बिठाया और अपने घर ले गया। शाम को हमने उसके टीवी से गेम कनेक्ट करके खेली। बाहर हल्की बारिश होने लगी, तो उसने मुझे बाइक पर ड्राइव के लिए पूछा।
मैं उसके पीछे बैठा, और हम ऐसे ही शहर का चक्कर लगाकर वापस आ गए। घर आने के बाद हम गीले हो चुके थे।
मैं उसके बेडरूम में चेंज करने गया। पीछे से उसने दरवाजा बंद किया, और मेरे करीब आया।
उसे इतना करीब पा कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ाने लगी। उसने मेरी आँखों में अपनी आँखें डाली, और मुझसे पूछा-
नीरज: उस शाम की किस कैसी लगी?
मैं: अच्छा.
मैंने कुछ बोल नहीं पाया, और मुस्कुरा दिया। उसने मेरी हिचक समझी और एक और बार अपने होठों पर मेरे होठों को रख दिया।
इस बार मैंने भी साथ दिया, और हमने एक-दूसरे को छुआ। हमारे पहले हांथ मिले, फिर एक-दूसरे की जुबान मिली।
उसके बाद हम एक-दूसरे से अलग हो गए। हम दोनो के लंड खड़े हो चुके थे। मैंने अपनी पीठ उसकी और कर ली क्योंकि मुझे शर्म आ रही थी।
वो मेरे करीब आया और पीछे से मुझे पकड़ लिया। गीली होने की वजह से उसकी पैंट चिपक चुकी थी। और मेरे चूतड़ पर उसका खड़ा लंड मैं महसूस कर रहा था।
उसका लंड छूते ही मेरी आंखें बंद हो गई, और मुँह से आह निकल गया। मैं शरम के मारे पानी-पानी हो गया।
मुझे शर्मीले देख उसने पीछे से दो-तीन बार आगे-पीछे करके अपना लंड मेरे चूतड़ पर मार दिया। मैं मुस्कुराया और वो अपने आप पर गर्व करने लगा।
उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और बालकनी में ले गया। बालकनी में से उसका पीछे का बगीचा दिख रहा था, और चांद की रोशनी के मौसम को और रोमांटिक कर रही थी।
उसने मुझे अपने भगवान में बिठाया, और मैं भी छोटे बच्चों की तरह उसे लिपट गया। उसने मेरी आँखों में देखा और मेरे लंड पर हाथ रख दिया।
अभी मैंने अपनी आंखें बंद कर दी। पर इस बार उसकी नज़र मेरे चेहरे से नहीं हट रही थी।
नीरज: कितना शर्माओगे अमित। अभी तो मैंने कुछ किया भी नहीं।
मैं: पता नहीं नीरज. मुझे तुम्हारे सामने क्या हो जाता है। ना कुछ बोल पाता हूँ, और ना तुम्हें किसी चीज़ के लिए रोक पाता हूँ।
नीरज: मुझे रोकने की हिम्मत तुम्हें नहीं है क्या?
मैं: नीरज नहीं, मैं तुम्हें रोक नहीं सकता, चाहे तुम कुछ भी कर लो।
नीरज: कुछ भी कर लो. अच्छा तो अभी तुम्हारी पैंट में से तुम्हारे लंड को बाहर निकलता हूँ। ये सुन के मैं चौक गया, क्योंकि मैंने कभी किसी लड़के के सामने चड्डी तो क्या, शर्ट तक नहीं उतारी थी।
नीरज: लेकिन एक शर्त है। तुम मेरी नज़रों से नज़रें मिलाते रहना। अगर अपनी आंखें बंद की, तो मैं तुमसे बात नहीं करूंगा। उसकी इस बात से मुझे बुरा लगा, कि वो मुझसे बात नहीं करेगा।
उसने मेरी और देखा, और मैंने उसकी और। फिर उसने मेरी पैंट के बटन खोले और ज़िप को खोल दिया। उसने अपने हाथ मेरे पेट पर घुमाए, और मेरी चड्डी के अंदर एक उंगली डाली।
फिर उसने मेरी हल्की झांटो को मुस्कुरा दिया। उसने आँखों से मुझे छेड़ा। फिर अपने हाथ मेरी चड्डी के अंदर डाले, और मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ा।
मैंने भी उसके हाथ महसूस होते ही उसके हाथ के लिए एडजस्टमेंट की। अपने लंड के साथ-साथ उसके हाथों को मेरे टैटू तक पाहुंचाया। नीरज और मैं एक-दूसरे को देख रहे थे, और नीचे वो मेरे लंड के साथ खेलने लगा।
वो धीरे-धीरे करके उसे हिलाने लगा और कुछ देर में मुझे लगा कि मेरा गिर जाएगा। मैने बताया कि वह रुक गया। मैंने भी कंट्रोल किया. कम तो नहीं निकला, पर प्री-कम सफेद रंग में उसके हाथ पर गिर ही गया।
दिखने में औसत हूं. मैं अपने घर में अकेला लड़का हूं और बहुत शर्मीला किस्म का इंसान हूं।
इसलिए एक-दम मैं खुल कर नहीं बोलता। मुझे किसी और के साथ घुलने-मिलने में वक्त लगता है। मुझे लड़के भी पसंद हैं, पर मैंने ये बात अपने तक राज़ ही रखी थी।
मैंने हाल ही में ऑफिस ज्वाइन किया था, जो दिल्ली में है, और वहीं मैं नीरज से मिला। उसकी उम्र 25 साल है. दिखने में बहुत हॉट और सेक्सी है।
हमारी जान-पहचान आम सहकर्मियों के लिए जरूरी हुई। फिर रोज़ मिलने की वजह से हमारी बात होने लगी। कुछ ऑफिस की पार्टियों में हम थोड़े पास आ गए।
नीरज को पता चल गया कि मुझे लड़के भी पसंद है, तो उसने मेरे साथ फ्लर्ट करना शुरू कर दिया।
वो हमेशा अकेले में फ़्लर्ट करता है, और देखते ही देखते उसने एक शाम अपने दिल की बात बताई कि वो मुझे पसंद करता था।
पर मैं अभी भी श्योर नहीं था, और हमेशा की तरह कन्फ्यूज था। मैं समझ नहीं पाया कि कैसे प्रतिक्रिया करूँ। पर ऐसी स्थिति में भी नीरज बड़ी शांत और परिपक्वता के साथ मुझे संभालना था।
एक शाम मैं नीरज के साथ ब्रिज पर घूमने गया। अकेले पा कर उसने मेरा हाथ पकड़ा। मेरा दिल ज़ोर से धड़कना शुरू हुआ।
धीरे-धीरे उसने मुझे करीब खींच लिया। मेरा मुँह अपनी तरफ करके उसने मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए। उसने एक हाथ से मेरी गर्दन को पकड़ा और दूसरे हाथ से मेरी कमर को।
अपनी और खिंचते हुए उसने मेरे होंठों को चूमा और चूसना शुरू किया। मैं भी अपनी आंखें बंद करके उनके होंठों को अपने होंठों पर रखकर मुंह में दर्द कर रहा था।
कुछ वक्त के बाद हम रुके, और एक-दूसरे से कुछ नहीं बोला। बस एक-दूसरे के हाथों में हाथ पकड़कर घर वापस आ गए। घर आ कर मेरे दिमाग में उसी की बातें और किस याद आ रहा था।
मैं अपने आप पर नियंत्रण नहीं कर पाया, और उसे याद करके मुंह मारने लगा। कमरे में अकेला था ही, तो वहीं पर अपना कमरा निकाल दिया।
दूसरे दिन से हम वापस ऑफिस के बाद नीरज बिताने लगे। उसने धीरे-धीरे अपने रंग में मुझे रंग दिया था। एक रात उसने मुझे नाइट-आउट के लिए पूछा तो मैंने भी हां कर दी।
उस शाम उसने मुझे बाइक पर बिठाया और अपने घर ले गया। शाम को हमने उसके टीवी से गेम कनेक्ट करके खेली। बाहर हल्की बारिश होने लगी, तो उसने मुझे बाइक पर ड्राइव के लिए पूछा।
मैं उसके पीछे बैठा, और हम ऐसे ही शहर का चक्कर लगाकर वापस आ गए। घर आने के बाद हम गीले हो चुके थे।
मैं उसके बेडरूम में चेंज करने गया। पीछे से उसने दरवाजा बंद किया, और मेरे करीब आया।
उसे इतना करीब पा कर मेरे दिल की धड़कन बढ़ाने लगी। उसने मेरी आँखों में अपनी आँखें डाली, और मुझसे पूछा-
नीरज: उस शाम की किस कैसी लगी?
मैं: अच्छा.
मैंने कुछ बोल नहीं पाया, और मुस्कुरा दिया। उसने मेरी हिचक समझी और एक और बार अपने होठों पर मेरे होठों को रख दिया।
इस बार मैंने भी साथ दिया, और हमने एक-दूसरे को छुआ। हमारे पहले हांथ मिले, फिर एक-दूसरे की जुबान मिली।
उसके बाद हम एक-दूसरे से अलग हो गए। हम दोनो के लंड खड़े हो चुके थे। मैंने अपनी पीठ उसकी और कर ली क्योंकि मुझे शर्म आ रही थी।
वो मेरे करीब आया और पीछे से मुझे पकड़ लिया। गीली होने की वजह से उसकी पैंट चिपक चुकी थी। और मेरे चूतड़ पर उसका खड़ा लंड मैं महसूस कर रहा था।
उसका लंड छूते ही मेरी आंखें बंद हो गई, और मुँह से आह निकल गया। मैं शरम के मारे पानी-पानी हो गया।
मुझे शर्मीले देख उसने पीछे से दो-तीन बार आगे-पीछे करके अपना लंड मेरे चूतड़ पर मार दिया। मैं मुस्कुराया और वो अपने आप पर गर्व करने लगा।
उसने मुझे अपनी गोद में उठा लिया और बालकनी में ले गया। बालकनी में से उसका पीछे का बगीचा दिख रहा था, और चांद की रोशनी के मौसम को और रोमांटिक कर रही थी।
उसने मुझे अपने भगवान में बिठाया, और मैं भी छोटे बच्चों की तरह उसे लिपट गया। उसने मेरी आँखों में देखा और मेरे लंड पर हाथ रख दिया।
अभी मैंने अपनी आंखें बंद कर दी। पर इस बार उसकी नज़र मेरे चेहरे से नहीं हट रही थी।
नीरज: कितना शर्माओगे अमित। अभी तो मैंने कुछ किया भी नहीं।
मैं: पता नहीं नीरज. मुझे तुम्हारे सामने क्या हो जाता है। ना कुछ बोल पाता हूँ, और ना तुम्हें किसी चीज़ के लिए रोक पाता हूँ।
नीरज: मुझे रोकने की हिम्मत तुम्हें नहीं है क्या?
मैं: नीरज नहीं, मैं तुम्हें रोक नहीं सकता, चाहे तुम कुछ भी कर लो।
नीरज: कुछ भी कर लो. अच्छा तो अभी तुम्हारी पैंट में से तुम्हारे लंड को बाहर निकलता हूँ। ये सुन के मैं चौक गया, क्योंकि मैंने कभी किसी लड़के के सामने चड्डी तो क्या, शर्ट तक नहीं उतारी थी।
नीरज: लेकिन एक शर्त है। तुम मेरी नज़रों से नज़रें मिलाते रहना। अगर अपनी आंखें बंद की, तो मैं तुमसे बात नहीं करूंगा। उसकी इस बात से मुझे बुरा लगा, कि वो मुझसे बात नहीं करेगा।
उसने मेरी और देखा, और मैंने उसकी और। फिर उसने मेरी पैंट के बटन खोले और ज़िप को खोल दिया। उसने अपने हाथ मेरे पेट पर घुमाए, और मेरी चड्डी के अंदर एक उंगली डाली।
फिर उसने मेरी हल्की झांटो को मुस्कुरा दिया। उसने आँखों से मुझे छेड़ा। फिर अपने हाथ मेरी चड्डी के अंदर डाले, और मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ा।
मैंने भी उसके हाथ महसूस होते ही उसके हाथ के लिए एडजस्टमेंट की। अपने लंड के साथ-साथ उसके हाथों को मेरे टैटू तक पाहुंचाया। नीरज और मैं एक-दूसरे को देख रहे थे, और नीचे वो मेरे लंड के साथ खेलने लगा।
वो धीरे-धीरे करके उसे हिलाने लगा और कुछ देर में मुझे लगा कि मेरा गिर जाएगा। मैने बताया कि वह रुक गया। मैंने भी कंट्रोल किया. कम तो नहीं निकला, पर प्री-कम सफेद रंग में उसके हाथ पर गिर ही गया।